إِلَّا الْمُسْتَضْعَفِينَ مِنَ الرِّجَالِ وَالنِّسَاءِ وَالْوِلْدَانِ لَا يَسْتَطِيعُونَ حِيلَةً وَلَا يَهْتَدُونَ سَبِيلًا
फ़ारूक़ ख़ान & अहमद
सिवाय उन बेबस पुरुषों, स्त्रियों और बच्चों के जिनके बस में कोई उपाय नहीं और न कोई राह पा रहे है;
फ़ारूक़ ख़ान & नदवी
मगर जो मर्द और औरतें और बच्चे इस क़दर बेबस हैं कि न तो (दारूल हरब से निकलने की) काई तदबीर कर सकते हैं और उनकी रिहाई की कोई राह दिखाई देती है