وَإِنْ خِفْتُمْ أَلَّا تُقْسِطُوا فِي الْيَتَامَىٰ فَانْكِحُوا مَا طَابَ لَكُمْ مِنَ النِّسَاءِ مَثْنَىٰ وَثُلَاثَ وَرُبَاعَ ۖ فَإِنْ خِفْتُمْ أَلَّا تَعْدِلُوا فَوَاحِدَةً أَوْ مَا مَلَكَتْ أَيْمَانُكُمْ ۚ ذَٰلِكَ أَدْنَىٰ أَلَّا تَعُولُوا
फ़ारूक़ ख़ान & अहमद
और यदि तुम्हें आशंका हो कि तुम अनाथों (अनाथ लड़कियों) के प्रति न्याय न कर सकोगे तो उनमें से, जो तुम्हें पसन्द हों, दो-दो या तीन-तीन या चार-चार से विवाह कर लो। किन्तु यदि तुम्हें आशंका हो कि तुम उनके साथ एक जैसा व्यवहार न कर सकोंगे, तो फिर एक ही पर बस करो, या उस स्त्री (लौंड़ी) पर जो तुम्हारे क़ब्ज़े में आई हो, उसी पर बस करो। इसमें तुम्हारे न्याय से न हटने की अधिक सम्भावना है
फ़ारूक़ ख़ान & नदवी
और अगर तुमको अन्देशा हो कि (निकाह करके) तुम यतीम लड़कियों (की रखरखाव) में इन्साफ न कर सकोगे तो और औरतों में अपनी मर्ज़ी के मवाफ़िक दो दो और तीन तीन और चार चार निकाह करो (फिर अगर तुम्हें इसका) अन्देशा हो कि (मुततइद) बीवियों में (भी) इन्साफ न कर सकोगे तो एक ही पर इक्तेफ़ा करो या जो (लोंडी) तुम्हारी ज़र ख़रीद हो (उसी पर क़नाअत करो) ये तदबीर बेइन्साफ़ी न करने की बहुत क़रीने क़यास है