وَمَا كَانَ لِمُؤْمِنٍ وَلَا مُؤْمِنَةٍ إِذَا قَضَى اللَّهُ وَرَسُولُهُ أَمْرًا أَنْ يَكُونَ لَهُمُ الْخِيَرَةُ مِنْ أَمْرِهِمْ ۗ وَمَنْ يَعْصِ اللَّهَ وَرَسُولَهُ فَقَدْ ضَلَّ ضَلَالًا مُبِينًا
फ़ारूक़ ख़ान & अहमद
न किसी ईमानवाले पुरुष और न किसी ईमानवाली स्त्री को यह अधिकार है कि जब अल्लाह और उसका रसूल किसी मामले का फ़ैसला कर दें, तो फिर उन्हें अपने मामले में कोई अधिकार शेष रहे। जो कोई अल्लाह और उसके रसूल की अवज्ञा करे तो वह खुली गुमराही में पड़ गया
फ़ारूक़ ख़ान & नदवी
और न किसी ईमानदार मर्द को ये मुनासिब है और न किसी ईमानदार औरत को जब खुदा और उसके रसूल किसी काम का हुक्म दें तो उनको अपने उस काम (के करने न करने) अख़तेयार हो और (याद रहे कि) जिस शख्स ने खुदा और उसके रसूल की नाफरमानी की वह यक़ीनन खुल्लम खुल्ला गुमराही में मुब्तिला हो चुका
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